कहने की आवश्यकता ही नहीं कि नशा मानवीय व्यक्तित्व के लिए कितना घातक है। नशे के सेवन से अनेक प्रकार से मानसिक विकार पैदा होते है। इतना ही नहीं इसके इलावा नशे के सेवन से धर्म, अर्थ और काम का भी नाश होता है। हमारे सामने सवाल यह खड़ा होता है कि मनुष्य आखिर नशा करता क्यूं है? शराब, चरस, गांजा, अफीम तथा भांग का सेवन करके कुछ देर के लिए व्यक्ति सुख और आन्नद की अनुभूति करता है। मनुष्य आखिर बार-बार सुख और आन्नद की प्राप्ति के लिए बार-बार नशे का सेवन करता है। वास्तव में यही मनुष्य की आवृति उसकी आदत बन जाती हैं। मनुष्य नशे का सेवन करके एक दिन उसके पूर्ण वश में हो जाता हैं। व्यक्ति की यह परवशता असे नशेड़ी बना देती हैं। सीधी सी बात है कि नशेड़ी व्यक्ति नशा करने का बहाना ढुंढता है। यह अपनी इस आसुरी प्रवृत्ति से अपनी कुवृत्तियों पर पर्दा डालना चाहता है। यही कारण है कि वह त्यौहारो आदि पर जम कर नशा करता है। मद्यपान एक व्यापक प्रवृत्ति हैं। नशे के लिए अमीर-गरीब का कोई महत्व नहीं। सभी अपनी-अपनी आर्थिकस्थिति के अनुसार ही नशा करते है। गरीब वर्ग जहंा मामूली नशा करता है वहीं पर अमीर वर्ग उच्च श्रेणी के मादक पदार्थाे का सेवन करता है। अब नशा चाहे जो भी हो उच्च श्रेणी का हो या नीचे तबके का आखिर मानसिक और शारीरिक स्थिति तो एक जैसी ही होगी। नशे का सेवन अनेक प्रकार की सामाजिक बुराईयों को भी जन्म देता है। सामाजिक बुराई के पक्ष में महात्मा गांधी ने कहा है कि ‘‘शराब सब बुराईयों की जननी हैं। इसकी आदत राष्ट्र को विनाश के कगार पर लाकर खड़ा कर देगी।’’
अब हमारे सामने सवाल यह उठता है कि नशाखोरी रोकी कैसे जाएं? किस प्रकार देश को नशा मुक्त बनाया जाएं? पुरातन काल से ही नशे के सेवन पर रोक के प्रयास होते चले आ रहे हैं। पुराणों में मद्यपान को बहुत बड़ा अनर्थकारी बताया गया है। आज सरकार द्वारा उठाए गए कदम कारगर साबित न हो सके। चाहे वो केन्द्रीय सरकार हो या फिर राज्य सरकार। सरकार नशे को चाह कर भी नहीं रोक सकती क्योंकि अगर सरकार ने ऐसा किया तो देश को उद्योगिक क्षेत्र में बड़ी हानि का सामना करना पड़ सकता है। ऐसा नहीं है कि सरकार ने नशे को रोकने का प्रयास नहीं किया। नशे को रोकने का प्रयास तो स्वतन्त्रता मिलने के उपरान्त ही शुरू हो गया था। केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकारों के तमाम नियमों के बाद भी शराब तथा अन्य नशों का सेवन जनमानस में पूर्णता के साथ फल-फूल रहा है। अब तो यह कहना भी गलत नही होगा कि मद्यपान गौरव और आधुनिकता का प्रतीक बन गया है। जहां मद्यपान को कम होना चाहिए वहीं इसमें दिन-प्रतिदिन बढ़ोतरी हुई है। हरियाणा का प्रत्येक व्यक्ति जानता ही है कि शराबबन्दी के समय अपराध दर बढ़े थे। सरकार के इस काले कानून में (शराबीयों के लिए) राजस्व का नुक्सान होना ही था लेकिन शराबमाफियों ने शराबीयों के लिए शराब की कोई कमी नहीं छोड़ी। फलस्वरूप शराबबंदी के दुष्परिणामों को देख कर सरकार को इस कानून से मुंह की खानी पड़ी। मद्यपान की विसंगती और बुराई से प्रत्येक व्यक्ति परिचित है। फिर ऐसा क्यों ? प्रत्येक जागरूक व्यक्ति चाहता है देश इस बुराई से मुक्त हो फिर ऐसा क्यों ? फिर ऐसा क्यों ? यह सवाल हमारे सामनें तन कर आज भी खड़ा है। अगर हमारे देश को इस बुराई से मुक्ति पानी है तो सरकार को रास्जव-हानि और सत्ता हानि की चिंता किए बगैर कठोर-से-कठोर कदम उठाने होंगे। मादक पदार्थों के सारे स्त्रौतो को समाप्त करने का जी तोड़ प्रयास करना होगा। लोगों की अपनी मानसिकता में परिवर्तन करना होगा तभी लोग अंगूर की बेटी के अत्याचारों से निजात पा सकेंगे।
ललित पोपली
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हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
जय श्री कृष्ण...आपके ब्लॉग पर आ कर बहुत अच्छा लगा...बहुत अच्छा लिखा हैं आपने.....भावपूर्ण...सार्थक
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